कविता सुनें

रंजना


मै 
पढ़ रहा हूँ
गढ़ रहा हूँ
देश वा संसार को 
देखता हूँ,हर समय
हो रहे, अभिसार को
व्यापार है ये ..........
अर्थ की अभिव्यंजना
सामर्थ्य यह ,अभिव्यक्ति की है
ध्वन्यर्थ मेरी रंजना !!

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