कविता सुनें

आशा और निराशा छोड़ा |

आशा और निराशा छोड़ा |
भाव बहुत परिभाषा छोड़ा ||
जोड़ा अपनेआप हृदय को |
मन का मोह पिपासा छोड़ा || 

आशा और निराशा छोड़ा |
भाव बहुत परिभाषा छोड़ा ||

तुम हो अंतर्यामी स्वामी |
तुम हो भूत दूर के गामी ||
क्यों कहते हो परिचय कह दूं ?
अपने आप हृदय को जोड़ा || 
आशा और निराशा छोड़ा |
भाव बहुत परिभाषा छोड़ा ||

लिखना गति में बंधा हुआ है |
दिखना रति में लिखा हुआ है ||
किन अनुभव को और उकेरु |
अपनेआप हाथ का कोड़ा || 

आशा और निराशा छोड़ा |
भाव बहुत परिभाषा छोड़ा ||

गढ़ते गढ़ को पढ़ा हुआ है |
अपने रण को लिखा हुआ है ||
अनहद नाद बजाता उसका |
जिसका नंदी उसका घोड़ा ||

आशा और निराशा छोड़ा |
भाव बहुत परिभाषा छोड़ा ||

No comments:

Post a Comment

स्वीकृति 24 घंटों के बाद