कविता सुनें

परिभाषा मैं प्रेम की

आध्यात्मिक दोहे


(१)

परिभाषा मैं प्रेम की , ना बतलाऊ तोय |

यह सब जानोगे सखे , जाओगे जब खोय ||

(२)

पाओगे तुम कुछ नही , सब हममे साकार |

निराकार तुम खोजते , जो तेरा आकार ||

(३)

सबका त्याग तपस्या, सब मे ब्यापे रोग |

बलिहारी हे वेदना , तू सबका हो भोग ||

(४)

निधि जीवन की जा बसी, जिसमे मेरे कर्म |

धर्म जो कोई मापता , वह जाने बस मर्म ||

(५)

उस मंदिर की जा गली , जिसमे हो भगवान |

कोई न मूरति पूजता , सब पूजें इंसान ||

No comments:

Post a Comment

स्वीकृति 24 घंटों के बाद