कविता सुनें

चूम रही है वह उड़-उड़ कर


तितली उड़-उड़ बैठ रही है ,
फूल-फूल व डाली-डाली |
सबको जैसे प्यार सिखाती ,
कितनी प्यारी है मतवाली ||

चूम रही है वह उड़-उड़ कर ,
खिले अधखिले  फूलों को |
दिखा रही हर पल वह सपने ,
हिला डाल के झूलों को ||

धरा मनोहर बना रही वह ,
बैठ बैठ कर तृण-तृण पर |
आँखों को सुख देती जैसे ,
फूल खिलें हैं कण-कण पर ||

खुशबू फैला रही लगन से ,
बिखरा-बिखरा कर पंखुडियां |
उड़ गई कहती व्यर्थ न जाएँ ,
मूल्यवान जीवन की घड़ियाँ ||


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