फफके बहुत अघाय कुछ, भभके बहुत बुताय |
जो समझे वह समझ ले, झूठी अपनी गाय ||
कड़वा बनकर सब लिखूं, पर मीठी यह बात |
ढीठ कोई सरदार जो , अपनी भूमि समात ||
खूंटी पर टांगे खुदा, राखे मूठी बांध |
जब अपना मांगे सभी, देते संधि सड़ांध ||
मैं पीता हूं घूँट वह, जिसका पानी नेक |
एक हमारी साधना, एक हमारा भेक ||
क्या जानोगे तुम जले, कटे भुने से साक |
यह अपना परिहार है, यह अपनी है धाक ||
डोरी तुम डारे फिरे, किसकी नाक नकेल |
अपनी माया जानता, जो हो जाता फेल ||
अंत यही है संत यही, यही आदि आधार |
भाईचारा ही सही, जो चाहो व्यापार ||
कितना लूटोगे कटा, बंटा व्याधि का बेल |
तौले जी भर आँकता, यह रहमत का खेल ||
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स्वीकृति 24 घंटों के बाद