मंथन में भी मरा नहीं मैं ,
जिनसे बंधन दूर हुये |
स्वच्छन्द विचरते आसमान में ,
अन्धेन में बस क्रूर हुये ||
रंग भेद क्या जाति भेद क्या ,
भांति भांति के प्रश्न समर्पित |
उत्तर तुम ही दो उन्नति का ,
अवनति भार करूँ सब अर्पित ||
विध्न विधाता पालन कर्ता ,
यह संसार तुम्हारी लीला |
नियम धर्म सब तुमने राखे ,
फिर क्यों उलझे मान रोबीला ||
सब मानो सब जानो अपना ,
अपनी अपनी नीति पढ़ो |
कर लो सबसे प्यार मुहब्बत ,
बस अपनी यह नीति गढ़ो ||
नापो तौलो खोजो परखो ,
सब में एक वही विज्ञान |
सबका वह ही सेतु बना है ,
सबका ज्ञान वही अभिमान ||
आगे उसके और नहीं कुछ ,
जितना चाहो तुम सिर पटको |
मिल जाये तो मानो अपना ,
जो होता सब विधि विधान ||
No comments:
Post a Comment
स्वीकृति 24 घंटों के बाद