कौन समझता मैं अपराधी |
किसके घर की खेती खादी ||
कोई नहीं प्रतिवादन जिसमें |
सब हैं अपने मन के बाधी ||
आधी पूरी की हर कथनी |
मन की मोदक, मोहक मथनी ||
सत्ता का अधिकार समर्पित |
धन से होती है बस गर्वित ||
जिनके तन-मन जीवन में बस |
मिलती है बस दुनिया आधी ॥
कौन समझना चाहे सब ।
कौन जगत यह पाए सब ||
सबको यह अधिकार यहीं है |
कथनी है बस मार नहीं है ||
हार रहा क्यों खोकर अपना |
अपनी है यह मन की वादी ||
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स्वीकृति 24 घंटों के बाद