कविता सुनें

जब वह बोले कान में ! / When he spoke in the ear!






भारत जैसा देश नहीं है,
दुनिया और जहान में |
इसकी माटी कण कण पूजो,
बूझो खोजो नाम में ||

और काम यदि कर बैठो तो,
सब कुछ तुम्ही बताओगे |
वाम नहीं वह कुछ भी होगा,
जो सोचा होगा दाम में ||

पत्थर भी भगवान तभी तो ,
सिंहासन भी नाम तभी तो !
पैसा वैसा सब कुछ छोड़ो,
बस मेहनत नापो काम में ||

दुनियादारी भूल जाओ सब,
मूल समझ लो घाव की |
कैसा मरहम काम करेगा,
यह नही जानता जाम में ||

थोड़ा सोंचो और विचारों,
सुख-दुख किसकी परिधि बनी |
कौन हृदय का संगम होता,
कौन भिगोता शान  में ??

मैं माया हूं मोंम घृणा की,
मैं छाया हूं कौम तृणा की |
किसके पाथर अपनी माटी,
बस सब मर जाते नाम में ||


योग कहां से कैसे होता,
नही परख है कुछ भी उनको |
सपना ही बस देख रहे हैं,
सजे धजे संधान में ||

हे मूरख तू दिव्य समर्पित,
दर्शन तेरा मै ही जानू |
खोजो और विचारों कुछ तो-,
सब पाये विज्ञान में ||

नहीं कहाँ विज्ञान है कुछ भी,
सब कुछ सुधरा बिगड़ा रूप |
भाव बहुत है गहरे मन के,
जब वह बोले कान में !!

सभी तर्क के सम्मत जैसे,
सभी कुतर्कों की लीला |
ओर छोर तो नापो  खुद का,
डोर बहुत कुछ जान में !!

सब कुछ अपने भाव विचारों,
खोजो बीनो और सुधारो |
नाव चलाओ मद्धिम-मद्धिम,
पार उतर लो धाम में ||

यही जगत की वह धरती है,
जो जीती सब कुछ मरती है |
और कहां कुछ पाना होगा,
यही सभी कुछ दाम में ||

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