कविता सुनें

अपना और पराया मापा


पाप पुन्य का लेखा जोखा
मैंने बहुत समय तक मापा
आपा खोया कभी आपका
अपना और पराया मापा

अब क्या मापूं तुम ही बोलो
तुम हो सबका अपना मंदिर
तुम हो सार समर्पित सबको
तुमको अपना आप न आपा

भव्य विरोधों का यह मंदिर
जिसमें स्वाद सुगंध सभी कुछ
सहनशीलता भी भर सागर
अपना आप कहाँ का जापा

किसका ज्ञान गुबार ख़ुशी क्या
क्या भावों की पावन लीला
अनुभव आर धार सब झूठें
अपना आप भगा दे आपा

क्यों मुरख तू मोम काठ का
क्यों पाथर पर फूल खिलाये
चक्रव्यूह की पावन गठरी
अपनी थाम आपका भांपा

करन बहादुर ( नोयडा ) 9717617357

No comments:

Post a Comment

स्वीकृति 24 घंटों के बाद