कविता सुनें

कितने अंतर्भावो को मै और समेटूं अपने मन में


कितने अंतर्भावो को मै और समेटूं अपने मन में |
अपना सिन्धु बरसता हरदम सत्य सनातन जीवन में ||

खुले कपाटों का घर जैसे मंदिर का हर कोना -कोना |
मंदिर में हर फसल उगी है बिखरा है सब सोना -सोना ||

और किसी के धन की चर्चा अपना जीवन दान करूँ |
यौवन का मधुमास नहीं है अपना पथ उत्थान भरूं ||

पद की और प्रतिस्था कैसी जगतनियंता के हम स्वामी |
साँस भरे जो सब में हम वह हम अपनों के अंतर्यामी ||

करन बहादुर, बादलपुर, दादरी, गौतमबुद्ध नगर - 203207
मोबाईल – 09717617357

No comments:

Post a Comment

स्वीकृति 24 घंटों के बाद