बहारों तुम जरा ठहरो, मुझे भी पैर रखने दो |
किसी बैर क्या करना, सभी कि खैर करने दो ||
उड़ा हूँ पंख काटने पर, उडून मैं सांस रहने तक |
किसी की बात क्या सहना, कहूँ मैं बात उठने तक ||
ख्यालों में वही कहते, नही है जान मुर्दे हैं |
न गुर्दे हैं न फेफड़े जिनमें, वे आलीशान पर्दे हैं ||
गिरा दो खोल कर उनके, गुलाबों के महल झूंठे |
न खुशबू है न सुन्दरता, कहो कैसे न रब रूठे ||
बना ले कोई भी अपना, जिसे जो हमदर्द लगता हो |
जिसे कुछ प्यार आता हो, जिसे कुछ दर्द लगता हो ||
मै घायल हूँ कोई पंक्षी, उड़े को जो सैर करने को |
कदम तुम भी बढ़ा लो, बड़ी कुछ बैर करने को ||
नहीं हैं हौंसले जिनमें, वही इंसान बनते हैं |
खाते हैं गिरों का ज्ञान, मरों की सांस भरते हैं ||
करन बहादुर
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स्वीकृति 24 घंटों के बाद