कविता सुनें

(गीत) न खुशबू है न सुन्दरता


 

 बहारों तुम जरा ठहरो, मुझे भी पैर रखने दो |

किसी बैर क्या करना, सभी कि खैर करने दो ||


उड़ा हूँ पंख काटने पर, उडून मैं सांस रहने तक |

किसी की बात क्या सहना, कहूँ मैं बात उठने तक ||


ख्यालों में वही कहते, नही है जान मुर्दे हैं |

न गुर्दे हैं न फेफड़े जिनमें, वे आलीशान पर्दे हैं ||


गिरा दो खोल कर उनके, गुलाबों के महल झूंठे |

न खुशबू है न सुन्दरता, कहो कैसे न रब रूठे ||


बना ले कोई भी अपना, जिसे जो हमदर्द लगता हो |

जिसे कुछ प्यार आता हो, जिसे कुछ दर्द लगता हो ||


मै घायल हूँ कोई पंक्षी, उड़े को जो सैर करने को |

कदम तुम भी बढ़ा लो, बड़ी कुछ बैर करने को ||


नहीं हैं हौंसले जिनमें, वही इंसान बनते हैं |

खाते हैं गिरों का ज्ञान, मरों की सांस भरते हैं ||


करन बहादुर

  

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