कविता सुनें

भाव निराशा आशा जैसा


आज हृदय के संगम में ,
मै डूब बढ़ा हूँ गढ़ के आगे|
पढ़ के आगे और बढ़ा हूँ , 
अपने अंतर्मन के जागे ||

बोलो प्रभु की शक्ति कहाँ है ,
झांको मन की भक्ति कहाँ है |
तृप्ति कहाँ है अपने मन की,
धन है फिर अनुरक्ति कहाँ है ||

शक्ति समर्पित कर दो उनको ,
जिनकी भक्ति किया है तुमने |
शक्ति दिया है जिसने तुमको,
खोजो उसकी तृप्ति कहाँ है ||

भाव निराशा आशा जैसा , 
परिभाषा , परिभाषा जैसा |
सबकी युक्ति भक्ति है सबकी ,
अपनी शक्ति कहाँ है कैसा |

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