आज हृदय के संगम में ,
मै डूब बढ़ा हूँ गढ़ के आगे|
पढ़ के आगे और बढ़ा हूँ ,
अपने अंतर्मन के जागे ||
बोलो प्रभु की शक्ति कहाँ है ,
झांको मन की भक्ति कहाँ है |
तृप्ति कहाँ है अपने मन की,
धन है फिर अनुरक्ति कहाँ है ||
शक्ति समर्पित कर दो उनको ,
जिनकी भक्ति किया है तुमने |
शक्ति दिया है जिसने तुमको,
खोजो उसकी तृप्ति कहाँ है ||
भाव निराशा आशा जैसा ,
परिभाषा , परिभाषा जैसा |
सबकी युक्ति भक्ति है सबकी ,
अपनी शक्ति कहाँ है कैसा |
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स्वीकृति 24 घंटों के बाद