आध्यात्मिक दोहे
नारी नर में है बसी ,कोमल रखे स्वभाव।
अपने मन में झांक ले, अपने मन के भाव।।
घाव करे न भूल कर , और किसी की सोंच।
अपना सब कुछ त्याग दे , अपने धन की मोंच।।
मै बैरी उस नाम का , जिसका भरा गुबार।
जिसके सर में पिन चुभी , उसकी धरा उतार।।
पंडित बन के बैठ जा , अपना पूत संभाल।।
अपनी धुन में ऐंठ जा , अपना करे सवाल।।
हम तो चाभी नाम की , काम किसी का और।
भर -भर मुंह की खायेगा , मुंह की बात निकाल।।
शुद्ध नहीं कुछ अर्थ का , बुद्ध बने कुछ डाल।
जिसका पेंड खजूर का , पगड़ी धरे उछाल।।
बोये कुछ भी काट तू ,अपने घर को खोद।
मूरख माटी नाप तो , जिसके मोदक मोद।।
है सन्यासी बाप तो , हम क्यों है नादान।
किसकी करनी भोगना , किसका यह संज्ञान।।
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