कविता सुनें

अपनी कटी पतंग के ,जो तुम जोड़ो तार

आध्यात्मिक दोहे 


कौन साधना साध क्या ,करता बाधा दूर ।
अपनी धरती में ठगे , अपने जादा नूर ।।

प्रगट करो तो सीख लो ,अपना मन्मथ मोर।
कोर किसी के झांकना ,अपना रुंधो भोर ।।

अपनी कटी पतंग के ,जो तुम जोड़ो तार ।
भार विधा का लो समझ,समझो जो आधार।।

किसके कर्मठ ज्ञान की,अपनी नाव चकोर ।
भूले बिसरे भाग तो , तू मांगे ना और ।।

मंत्र नहीं कुछ तंत्र ना , जाने तू आधार ।
सब बिस्मृत सब फूल से,किसका कुछ व्यापार।।

हड्डी बांधे खाल तू , तू मांगे सब जार ।
किसके कारण रूप का, करता फिरे प्रचार।।

गठरी लाग लपेट की, अपने गुण की खान।
अपना रूप बताय जा, अपना कूप बखान।।

सब कुछ उसके पार है, जिसका भेद अभेद।
तब परिचय की बात क्या, किसका ढूंढे छेद।।

रावण बन के लूटता, अपनी ही सरकार ।
अपनी भूले याद सब, क्या किसका व्यभिचार।।

दुर्गुण तौले दाम तो , सगुण तौलता नाम ।
अपने घर को खोदना, अपना कुछ व्यायाम।।

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