कविता सुनें

योग हमारा ब्रम्ह है



मक्खन है नवनीत है , है यह सोन समान। 
योग साधना तो सखे , मानो जान जहान।।

योग हमारा ब्रम्ह है , योग हमारा दम्भ। 
योग हमारी साधना , योग बना स्तम्भ।।

योग परस्पर भोग का , योग परस्पर राम। 
रावण फिर टिक पाय ना , रावण का संग्राम।।

कुंठा के हर भाव का , करता योग विनाश। 
आशा फिर - फिर जागती , है कुंठा का नाश।।


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