कविता सुनें

उल्लू जैसे शुष्क शाख का


खून देखकर उसका हमने 
मिथ्या सब कुछ माना है |
सत्य नहीं है धर्म वह कोई 
जिसने हिंसा जाना है ||

शूकर की औलाद जन्मते
हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई |
देखो दोनों आंखें खोलो 
ईराक विश्व का कान्हा है ||

खून देखकर उसका हमने 
मिथ्या सब कुछ माना है |
सत्य नहीं है धर्म वह कोई 
जिसने हिंसा जाना है ||

जिसका तेल जगत में प्रचलित
यही सभी का है उद्बोधन |
फिर भी सब हैं मूक देखते
क्या सबका ही वह मामा है ||

खून देखकर उसका हमने 
मिथ्या सब कुछ माना है |
सत्य नहीं है धर्म वह कोई 
जिसने हिंसा जाना है ||

मामा होगा फिर भी तो वह 
मम्मी का ही भाई होगा | 
सोंच कबूतरबाज अमेरिका 
यह तेरा कैसा बाना है ?

खून देखकर उसका हमने 
मिथ्या सब कुछ माना है |
सत्य नहीं है धर्म वह कोई 
जिसने हिंसा जाना है ||

उल्लू जैसे शुष्क शाख का 
मैंने देखा है बस तुझको |
खुद को सबका नेता कहता
क्या तेरा ही यह ताना है ||

खून देखकर उसका हमने 
मिथ्या सब कुछ माना है |
सत्य नहीं है धर्म वह कोई 
जिसने हिंसा जाना है ||

बोल बता है चुप क्यूँ बैठा
घटिया तेरी नीति यही है |
रीति न जाने तू जीने की
तेरा तो जग सब मामा है ||

खून देखकर उसका हमने 
मिथ्या सब कुछ माना है |
सत्य नहीं है धर्म वह कोई 
जिसने हिंसा जाना है ||

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