आध्यात्मिक दोहे
रंगते राम रहीम सब , हम भी रंगे कपाट।
कुण्डी ताला खोलते , सरपट सटे सपाट।।
पंक्षी बनते भूमि के , उड़ते जो आकाश।
माया कैसे रूप की , क्या परिभाषा भास।।
भाषा यह किस रूप की,करती जो अभिराम।
बिरह मिलन की प्यास तो , घर भर देती काम।।
ठग तू तौले काम का , हम तौलें बस घाम।
अपनी सर्दी नापना , अपना है आराम।।
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