कविता सुनें

अपनी सर्दी नापना

आध्यात्मिक दोहे 


रंगते राम रहीम सब , हम भी रंगे कपाट। 
कुण्डी ताला खोलते , सरपट सटे सपाट।।

पंक्षी बनते भूमि के , उड़ते जो आकाश। 
माया कैसे रूप की , क्या परिभाषा भास।।

भाषा यह किस रूप की,करती जो अभिराम।
बिरह मिलन की प्यास तो , घर भर देती काम।।

ठग तू तौले काम का , हम तौलें बस घाम। 
अपनी सर्दी नापना , अपना है आराम।।

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