पाकिस्तान के आर्मी पब्लिक स्कूल में अटैक पर
जिंदा है क्या कोई मुस्लिम ,
अब भी जीने की खातिर।
खून उन्ही की उनकी छत है ,
उनके हैं हथियार सभी।
मरने वाले अल्लाह थे ,
पर जीने वाले सब काफ़िर।।
नहीं जानते धर्म कोई भी ,
हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई।
एक शिवा है डमरू वाला ,
और दूसरा मुस्लिम साँई।
दोनों की ही पूजा होती ,
कहाँ धार्मिक झगड़ा माहिर ।।
अंतर दोनों में बस इतना ,
एक गाय की पूजा करता।
एक गाय को काट रहा है ,
बाँट रहा है हिन्दू मुस्लिम।
पड़े यहाँ जो शव उसके हैं ,
इससे ज्यादा हो क्या जाहिर ।।
आँखें खोलो सुबह हो गई ,
समता का हुंकार भरों।
कोई बड़ा न छोटा कोई ,
झगड़ों का प्रतिकार करो।
हाथ मिला लो गले लगा लो ,
बस जीवन जीने की खातिर ।।
सर्वनाश क्यों करते खुद का ,
चंद सियासत के कारण।
सत्ता नहीं गुलाम किसी की ,
हम उस सत्ता के हैं चारण।
जिसका जग में डंका बजता ,
वही कराता सब कुछ जाहिर ।।
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