कविता सुनें

लौकिक है जो वही अलौकिक




लौकिक है जो वही अलौकिक ,
कुछ भी इसके पार नही। 
पारावार समझता अपना ,
जब कोई आधार नहीं ।।

स्तम्भ नहीं बन सकता कोई ,
जिसके सिर व पैर यहाँ। 
बुद्धिवाद की बिस्मृत बातें,
कर दे झूठा रूप जहाँ ।।

सिंघासन पर कागा बैठा ,
बोल रहा है अपने बोल। 
तौल ह्रदय से अपनी गठरी ,
अपनी खेती अपना मोल।।

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