आध्यात्मिक दोहे
मैं हूं मोम कपास हूं , मै हूं गाजर आम |
मूली मै उस खेत की , जिसका कोइ न दाम ||
सब अनमोल विचार से , किसकी खेती नीकी |
बोयें जोतें जो भले , उनकी माटी ठीकि ||
सब परहित के भाव से , अपना करते लाभ |
अपना तो घर काठ का , अपनी माठे चाभ ||
गुरु बने जो भूख के , उनकी रूखी दाल |
काला सब कुछ कर रहे , अपनी जेब खंगाल ||
आधे भाव समेट के , मांगे सब कुछ मोर |
पोर –पोर पर गिन सखे , होते भाव विभोर ||
हरियाली किस आँख की, अपना देश जहान |
अपना तो बस गाँव ही , है सबका संज्ञान ||
भूली बिसरी छोड़ दो , आभा नूतन बोय |
कौन पुरातन ग्रन्थ का , पंथ गया है खोय ||
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स्वीकृति 24 घंटों के बाद