कविता सुनें

वफ़ादार कच्छा



बारीखियां...
निकालें तो अच्छा है 
जो मेरा कच्छा है
फटा है 
पुराना है
फिर भी.....
मन का सच्चा है
वह कभी भी
किसी के भी
पास नही जाता 
कि- कोई पहन ले मुझे 
मुस्कुराए याद आए 
जले या बुझे 
ऐसा कुछ नही करता
मरता है तो वह 
बस............
मुझ पर ही है-
मरता .......!

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