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आशा है वह उपवन की / I hope that the garden


स्त्री को स्त्री रहने बस, और नाही कुछ शेष चाहिये ।
उसमें ही उसकी सुंदरता, आज यही परिवेश चाहिये ।।

धरती है वह आसमान है, वह चंचल पावन और पवितत्रा ।
वैभव सारा स्त्री से है , स्त्री रामायण है और सुमित्रा ।।

स्त्री है परिवेश, प्रथा , व पूजा अपने यौवन की ।
घोर निराशा जब छा जाये, आशा है वह उपवन की ।।

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