कविता सुनें

पंख उघाड़े झाँकता




होली रंग गुलाल की, होली मन का मोर |
पंख उघाड़े झाँकता, रंग डाले सर बोर ||

रंग के कितने रूप हैं, हर चेहरे की आँख |
होली बनकर देखता, उड़ जाता ले पांख ||

भाषा बोली रंग की, ढंग देय अनुकूल |
जो चाहे सो पोय ले, मधुर वचन के फूल ||

यह बसंत की गंध ही, दे जाती एहसास |
जिसमें अपने आप सब, खिल जाता आकाश ||

परिचय किसका पूंछते, यह बौराये आम |
अपनी भाषा बोलते, अपना देय पयाम  ||

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